राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस में एक बार फिर ऐसी लापरवाही सामने आई है, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया है। 11 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही एक महिला की गलत रक्त चढ़ाए जाने के कारण मृत्यु हो गई। आश्चर्य की बात यह है कि महिला की मेडिकल फाइल भी अस्पताल में मौजूद नहीं है।
यह मामला सिर्फ लापरवाही की कहानी नहीं है बल्कि पूरी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी सबूत है। भास्कर ने जब मामले की तह तक जाने की कोशिश की तो पता चला कि मौत के 35 घंटे बाद भी अस्पताल प्रशासन यह पता नहीं लगा पाया कि गलती किसकी थी, ड्यूटी पर कौन था और खून किसने चढ़ाया था। सबका एक ही जवाब था कि महिला गंभीर थी।
वास्तविकता यह है कि अस्पताल में रक्तदान प्रक्रिया की कई स्तरों पर जांच और पुष्टि की जानी चाहिए। रेजीडेंट डॉक्टर और नर्स को मिलकर यह देखना होता है कि जो खून मंगवाया गया है, वह मरीज को चढ़ाया जा रहा है या नहीं, लेकिन व्यवस्था इतनी दोषपूर्ण है कि कहीं भी जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती।
ब्लड बैंक में 70 प्रतिशत कर्मचारी अनुबंध पर हैं; यदि उन्हें पर्ची मिल जाती है तो वे बिना पुष्टि के ही प्रवेश कर रक्तदान कर देते हैं। वार्ड में खून पहुंचाने वाला वार्ड बॉय भी अनुबंध पर है। इसका अर्थ यह है कि पूरी जिम्मेदारी उस ढांचे पर है जिसमें स्थिरता या जवाबदेही का अभाव है।
यह पहला मामला नहीं है। फरवरी 2024 में 23 वर्षीय सचिन को गलत रक्तदान दे दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। दिसंबर में भरतपुर का 10 वर्षीय मुस्तफा भी ऐसी ही लापरवाही का शिकार हुआ था और अब यह गर्भवती महिला, जिसकी मौत को पहले छिपाने की कोशिश की गई और अब उसकी फाइल भी 'गायब' कर दी गई है।
मानवाधिकार आयोग ने इस गंभीर मामले का संज्ञान लिया है। आयोग ने एसएमएस के अधीक्षक और प्रिंसिपल को नोटिस जारी कर 12 जून तक तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। साथ ही दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक और जांच कमेटी इस मौत का जवाब दे पाएगी? अन्यथा कार्रवाई की घोषणा के साथ ही ड्यूटी समाप्त हो जाएगी।